अग्नि ~ जल
अग्रगामी ~ अनुगामी
अग्रज ~ अनुज
अगींकार ~ अस्वीकार
अस्त ~ उदय
अतल ~ वितल
अति ~ अल्प
अतिवृष्टि ~ अनावृष्टि
अतीत ~ वर्तमान
अत्यधिक ~ स्वल्प
अथ ~ इति
अदोष ~ सदोष
अधम ~ उत्तम
अधंकार ~ प्रकाश
अनुकूल ~ प्रतिकूल
अनुग्रह ~ विग्रह
अनुरक्त ~ विरक्त
अनुराग ~ विराग
अनेक ~ एक
अज्ञ ~ विज्ञ
अर्वाचीन ~ प्राचिन
अपकार ~ उपकार
अपकृत ~ उपकृत
अपना ~ पराया
अपमान ~ सम्मान
अर्पण ~ ग्रहण
अवनत ~ उन्नत
अवनति ~ उन्नति
अल्पायु ~ दीर्घायु
अमर ~ मर्त्य
अमीर ~ गरीब
अमृत ~ विष
अपेक्षा ~ उपेक्षा
अल्पज्ञ ~ बहुज्ञ
अर्थ ~ अनर्थ
अमावस्या ~ पूर्णिमा
अहिंसा ~ हिंसा
अंदर ~ बाहर
आकर्षण ~ विकरषण
आकीर्ण ~ विकीर्ण
आकँचन ~ प्रचारण
आज ~ कल
आजादी ~ गुलामी
आतुर ~ अनातुर
आदान ~ प्रदान
आदि ~ अन्त
आदिष्ट ~ निषिद्ध
आधुनिक ~ प्राचीन
आर्द्र ~शुष्क
आन्तरिक ~ वाह्य
आमिष ~ निरामिष
आवृत्त ~ अनावृत्त
आविर्भूत ~तिरोहित
आय ~ व्यय
आयात ~ निर्यात
आरुढ़ ~ अनारूढ़
आरोह ~अवरोह
आरंभ ~ अतं
आलोक ~ अन्धकार
आलस्य ~स्फूर्ति
आशा ~ निराशा
आस्था ~ अनास्था
आहवान ~विसर्जन
इष्ट ~ अनिष्ट
इहलोक ~ परलोक
ईद ~ मुहर्रम
ईश्वर ~ जीव
उग्र ~ सौम्य
उत्कर्ष ~ अपकर्ष
उत्तम ~ अधम
उदय ~ अस्त
उदयाचल ~ अस्ताचल
उदार ~ अनुदार
उदात्त ~ अनुदात्त
उद्यमी ~ निरूद्यम
उर्ध्वगामी ~ अधोगामी
उन्मीलन ~ निमीलन
उन्नति ~ अवनति
उपसर्ग ~ प्रत्यय
उपस्थित ~ अनुपस्थित
उपयुक्त ~ अनुपयुक्त
एक ~ अनेक
एकमुख ~ बहुमुख
ऐहिक ~ पारलैकिक
ऐश्वर्य ~ अनैश्र्वर्य
ऋजु ~ वक्र
ऋणात्मक ~ धनात्मक
कठोर ~ कोमल
कटु ~ मधुर
कनिष्ठ ~ ज्येष्ठ
करुण ~ निष्ठुर, कठोर
कर्कश ~ सुशील
कर्मण्य ~ अकर्मण्य
कीर्ति ~ अपकीर्ति
कुटील ~ सरल
कुलदीप ~ कुलांगार
कुसुम ~ बज्र
कृतज्ञ ~ कृतघ्न
कृत्रिम ~ प्राकृत
कृपण ~ दाता, उदार
कृश ~ पुष्ट
कृष्ण ~ श्व्रेतकोप ~ कृपा
क्रिया ~ प्रतिक्रिया
क्रोध ~ क्षमा
खण्डन ~ मण्डन
खाद्य ~ अखाद्य
खीझना ~ रीझना
गगन ~ घरती
गणतन्त्र ~ राजतन्त्र
गम्भीर ~ मुखर
गरल ~ सुधा
गरीब ~ अमीर
गहरा ~ छिछला
गुण ~ अवगुण
गुरू ~ शिष्य
गृहस्थ ~ संन्यासी
गौरव ~ लाघव
ग्रस्त ~ मुक्त
ग्राम्य ~ नगर
ग्राह्य ~ अग्राह्य
घात ~ प्रतिघात
चचंल ~ शान्त
चोर ~ साधु
च्युत ~ अच्युत
छाया ~ धूप
जन ~ निर्जन
जन्म ~ मृत्यु
जय ~ पराजय
जवाब ~ सवाल
जेय ~ अजेय
जड़ ~ चेतन
ज्येष्ठ ~ कनिष्ठ
ज्योति ~ तम
ज्वार ~ भाटा
जगंम ~ स्थावर
तम ~ प्रकाश
तरल ~ कठिन
तल्लीन ~ उदासीन
ताप ~ शीत
दिन ~ रात
दिवा ~ रात्रि
दुश्मन ~ मित्र
दूषित ~ स्वच्छ
दृढ़ ~ अदृढ़
देश ~ विदेश
धनी ~ गरीब
धूप ~ छाँव
धरती ~ आकाश
ध्वनि ~ प्रतिध्वनि
नश्वर ~ शाश्वत
निज ~ पर
निरर्थक ~ सार्थक
निराशा ~ आशा
निर्मल ~ मैला
निर्यात ~ आयात
न्याय ~ अन्याय
पक्ष ~ विपक्ष
पण्डित ~ मूर्ख
पतन ~ उत्थान
पतनोन्मुख ~ विकासोन्मुख
परकीय ~ स्वकीय
परतन्त्र ~ स्वतन्त्र
परमार्थ ~ स्वार्थ
परिश्रम ~ विश्राम
परुष ~ कोमल
पर्णकुटी ~ प्रासाद
पालक ~ घालक
पाप ~ पुण्य
पास ~ दूर
पिक ~ काक
पुरस्कार ~ तिरस्कार, दण्ड
पुराना ~ नया
प्रकाश ~ अधंकार
प्रख्यात ~ कुख्यात
प्रतक्ष्य ~ परोक्ष
प्रधान ~ गौण
प्रलय ~ सृष्टि
प्रफुल्ल ~ म्लान
प्रवृत्ति ~ निवृत्ति
प्रश्न ~ उत्तर
प्रशंसा ~ निन्दा
प्रसारण ~ संकोचन
प्राकृतिक ~ कृत्रिम
प्राणपद ~ प्राणान्तक
प्रेम ~ घृणा
फल ~ प्रतिफल
बसन्त ~ पतझड़
बाढ़ ~ सूखा
बुरा ~ भला
बूढ़ा ~ जवान
भय ~ साहस
भला ~ बुरा
भली ~ बुरी
भोगी ~ योगी
मान ~ अपमान
मालिक ~ नौकर
मित्र ~ शत्रु
मिशाल ~ बेमिशाल
मुश्किल ~ आसान
मूक ~ वाचाल
मृत्यु ~ जन्म
योग ~ वियोग
रत ~ विरत
राजतंत्र ~ जनतंत्र
राजा ~ प्रजा
रात ~ दिन
रात्रि ~ दिवा
रोगी ~ निरोग
विधवा ~ सधवा
विश्वास ~ अविश्वास
वीर ~ कायर
वीरता ~ कायरता
सकाम ~ निस्काम
सगुण ~ निर्गुण
सज्जन ~ दुर्जन
सत्य ~ असत्य
सदाचार ~ दुराचार
सविकार ~ निर्विकार
सभय ~ निर्भय
सहयोग ~ प्रतियोगी
सामयिक ~ असामयिक
सात्विक ~ तामसिक
साधु ~ असाधु
सार्थक ~ निरर्थक
सुकर ~ दुष्कर
सुमार्ग ~ कुमार्ग
सुलभ ~ दुर्लभ
सुधा ~ हलाहल, गरल
सुशील ~ दुःशील
सूक्ष्म ~ स्थूल
स्मरण ~ विस्मरण
स्वदेश ~ विदेश
स्वतन्त्रता ~ परतन्त्रता
स्वर्ग ~ नर्क, नरक
स्वाधीन ~ पराधीन
स्वीकृति ~ अस्वीकृति
स्थूल ~ सूक्ष्म
संकल्प ~ विकल्प
संगत ~ असंगत
संयोग ~ वियोग
शाप ~ वरदान
श्रेष्ठ ~ निकृष्ट
हर्ष ~ विषाद
हार ~ जीत
हिंसा ~ अहिसां
हँसी ~ रुदन
क्षमा ~ दण्ड
ज्ञान ~ अज्ञान
पुस्तकालय
भूमिका - मानसिक विकास के लिए अध्ययन का बड़ा महत्व है। इस संसार मे ज्ञान से बड़कर कोई अन्य वस्तु पवित्र नही हो सकती। ज्ञान के अभाव में मानव तथा पशु में कोई अंतर नहीं होता। ज्ञान प्राप्त करने के साधन मे पुस्तक को सर्वश्रेष्ठ मना गया है। पुस्तकें ज्ञान राशि के अथाह भंडार को अपने मे संचित किये रहती है। हमें पुस्तकालयों से हजारो वर्षो के सद्ग्रन्थों की प्राप्ति होती है।
पुस्तकालय की उत्पत्ती - पुस्तकालय दो शब्दों के योग से बना है। पुस्तकों का घर। पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जिसके उपयोगादी का सुनियोजित विधान होता हैं।
पुस्तकालय का महत्व - पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ पुस्तकें पाठकों को कुछ समय के लिए पढ़ने के लिए उधार दी जाती है। प्रत्येक पाठक जो पुस्तकालय से पुस्तक उधार लेता है, उसे मासिक या वार्षिक शुल्क चुकाना पड़ता है।
पुस्तकालय सबका सच्चा दोस्त - हमारे देश मे प्रत्येक पाठक प्रत्येक पुस्तक खरीद नही सकता है। पुस्तकालय सार्वजनिक सम्पत्ति है। सरकार कस्बो, नगरों, गाँवो में पुस्तकालय खोलती है और उनकी भी मद्त हो जाती है जो पुस्तक खरीदने में असमर्थ होता है। इसलिए पुस्तकालय सभी की एक सच्चा मित्र के समान होती है।
पुस्तकालय में पुस्तकों के प्रकार - पुस्तकालय में अनेक प्रकार की पुस्तकें होती है। पुस्तकालय में उपन्यास, जीवनी, आत्मकथाएं, कविताएं, कहानियां आदि से सम्बंधित पुस्तके होती है। कुछ पुस्तकालयों में समाचार पत्र और पत्रिकाएं भी मिलती है।
पुस्तकालय विभिन्न प्रकार के होते है। इनमें से प्रथम प्रकार के पुस्तकालय वे है जो विद्यालयों, महाविद्यालयो तथा विशवविद्यालय में विधमान है। दूसरे प्रकार के पुस्तकालय है निजी पुस्तकालय। जिनके स्वामी तथा उपयोग करने वाले प्रायः एक ही व्यक्ति होते है। तीसरे प्रकार के पुस्तकालय वर्गगत होते है। इनका स्वामी कोई सम्प्रदाय या वर्ग होता है। चौथे प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक होते है। ये भी प्रायः संस्थागत अथवा राजकीय होते है। इनका सदस्य कोई भी हो सकता है।
पुस्तकालय के लाभ - पुस्तकालय एक ऐसा स्त्रोत है जहाँ से ज्ञान की निर्मल धारा सदैव वहति रहती है। एक ही स्थान पर विभिन्न भाषाओं, धर्मो, विषयों, वैज्ञानिको, आविष्कारो, ऐतिहासिक तथ्यों से सम्बंधित पुस्तकें केवल पुस्तकालय मे ही उपलब्ध हो सकती है। एकान्त तथा शांत वातावरण में अध्ययनशील होकर कोई भी व्यक्ति ज्ञान की अनेक मणियो को प्राप्त कर सकता है। यहाँ हम अपने अवकाश के क्षणों का सदुपयोग कर सकते है। पुस्तकालय में बेठने से अध्ययन व्रती को बढ़ावा मिलता है तथा गहन अध्ययन सम्भव होता है।
पुस्तकालय की पुस्तक का सदुपयोग - पुस्तकालय समाजिक महत्व की जगह है। अतः यहाँ के ग्रन्थों को बर्बाद नही करना चाहिए। पुस्तकें समय पर लौटानी चाहिए तथा उनके पृष्ठो को गंदा नही करना चाहिए और न ही पृष्ठ फाड़ने अथवा चित्र काटने चाहिए। पुस्तकालय में बैठ कर शांतिपूर्ण अध्ययन करना चाहिए। । अध्यनोपरांत पुस्तक वहीं रख दी जानी चाहिए जहां से निकली है।
उपसंहार - आज हमारे देश मे अनेक पुस्तकालय है। परंतु अभी भी अच्छे पुस्तकालय की बहुत कमी है। इस अभाव को दूर करना सरकार का कर्त्तव्य है। अच्छे पुस्तकालय राष्ट निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अतः सरकार तथा अन्य संस्थानों को चाहिए कि अच्छे पुस्तकालय की स्थापना करें।
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