भाषा
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज में रहते हुए उसमें अपने भावों और विचारों को दूसरों तक पहुँचाने और उनके भाव-विचार जानने की इच्छा होना स्वाभाविक हैं । कभी-कभी वह कुछ ध्वनि-संकेतों का उच्चारण करता है। ये ध्वनि-संकेत ही भाषा की उत्पत्ति के मूल में कार्य करते हैं । अतः हम कह सकते हैं कि भाषा की रचना मनुष्य द्वारा उच्चारित ध्वनियों से होती है। चेहरे के हाव-भाव, हॅसकर, रोकर, आँखो, उँगलियों आदि से भावों और विचारों की अभिव्यक्ति तो हो सकती है, पर वह भाषा नहीं कही जा सकती।
भाषा वह समर्थ साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर या लिखकर अपने भावों तथा विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है।
भाषा के दो रूप हैं - क) मौखिक भाषा ख) लिखित भाषा ।
मौखिक भाषा - बोल-चाल की भाषा को मौखिक भाषा कहते हैं ।
लिखित भाषा - जब उच्चारित ध्वनि-संकेतों को निश्चित चिह्नो द्वारा लिखकर अंकित किया जाता है, तो उसे लिखित भाषा कहते हैं ।
लिखित भाषा ही भाषा का स्थायी रूप है, जिससे हम अपने भावों और विचारों को भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकते हैं ।
मौखिक व लिखित भाषा के रूपों में अंतर:
क। भाषा का मौखिक रूप प्राचीनतम है । यही भाषा का मूल रूप है । लिखित भाषा का विकास बाद में हुआ ।
ख। बच्चा आस-पास के वातावरण से बिना प्रयास किए जो भाषा सीख जाता है, वह भाषा का मौखिक रूप है, पर लिखित रूप सीखने के लिए अभ्यास और प्रयत्न की आवश्यकता होती है ।
ग। भाषा का मौखिक रूप से बदलता रहता है, जबकि लिखित रूप स्थायी होता है ।
बोली - थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदलने वाली मौखिक भाषा का स्थानीय रूप बोली कहलाता है ।
उपभाषा व भाषा - एक उपभाषा में अनेक बोलियाँ हो सकती हैं । जब एक साहित्यकार उपभाषा में समर्थ रचना प्रस्तुत करता है और जब वह एक सर्वमान्य रूप प्राप्त कर लेती है, तो 'उपभाषा' 'भाषा' बन जाती है । जैसे तुलसीदास ने अवधी में 'रामचरितमानस' की रचना कर उसे भाषा का दरजा दिलाया ।
हिंदी भाषा को पाँच उपभाषाओ में बाँटा गया है, उनकी अलग अलग बोलियाँ हैं-
क्र.
सं. |
उपभाषा |
बोलियाँ |
1 |
पूर्वी हिंदी |
अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी। |
2 |
पश्चिमी हिंदी |
खड़ीबोली, ब्रजभाषा, हरियाणवी, बूंदेली, कन्नौजी । |
3 |
बिहारी हिंदी |
भोजपुरी, मैथिली, मगही । |
4 |
पहाड़ी हिंदी |
गढ़वाली, कुमाऊँनी । |
5 |
राजस्थानी हिंदी |
मेवाती, मारवाड़ी, जयपुरी । |
लिपि - मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अंकित करने के लिए निश्चित किए गए चिह्न लिपि कहलाते हैं।
प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है। संसार में अनेक भाषाएं और अनेक लिपियाँ हैं।
व्याकरण
व्याकरण वह शास्त्र है, जिसके द्वारा भाषा के शुद्ध स्वरूप व शुद्ध प्रयोग का ज्ञान होता है।
व्याकरण के अंग 👇
1. ध्वनि-विचार - इसमें ध्वनियों के भेद, उच्चारण, लेखन व उनके संयोजन पर विचार किया जाता है।
2. शब्द-विचार - इसमें शब्दों के उत्पत्ति, भेद रूपान्तर व रचना पर विचार किया जाता है।
3. पद-विचार - इसमें पदभेद, पदबंध पर विचार किया जाता है।
4. वाक्य-विचार - इसमें वाक्य संरचना, वाक्य-भेद, वाक्य रूपान्तर व विराम-चिह्न पर विचार किया जाता है।
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